गुरुवार, 20 जुलाई 2017

ओल अर्थात् जिमीकंद को कदापि नहीं समझें एक साधारण सब्जी

राकेश कुमार श्रीवास्तव 


भोजपुरी, बंगाली एवं अन्य कई राज्यों में भी जिसे हम ओल कहते हैं वास्तव में उसका नाम जिमीकंद है। जिमी का मतलब होता है हाथी अर्थात् हाथी के पांव की छाप की तरह दिखनेवाले ओल को हम जिमीकंद कहते हैं। हमलोग कई बार इस ओल को बाबाजी का ओल भी कहकर इसका मजाक उड़ाया करते हैं। यही बाबाजी का ओल बाबाजी का ठुल्लू के रूप में कपिल शर्मा के शो में ज्यादा प्रसारित हुआ। मगर बहुत ही गंभीरता से और सही दिशा में सोचेंगे तो इस बाबाजी के ओल का मतलब कुछ इस तरह से पाएंगेः जरा इस तरह से सोचिएः बाबाजी का ओल अर्थात् पुराने जमाने के बाबाजी जो जड़ी-बुटियों का भी ज्ञान रखते थे जिन्होंने इसका संधान किया होगा उनका खोजा हुआ जिमीकंद या ओल। ये समझने के लिये है।

खैर आज मैं आपको जिमीकंद के बारे में विस्तार से बताऊंगा। इसलिये कि इसमें कैंसर से लेकर बवासीर और कम रक्त की समस्या तक को ठीक करने के तत्व पाये गये हैं। जो लोग जिमीकंद का बराबर सेवन करते हैं उन्हें कैंसर जैसी बीमारी तो कभी होगी ही नहीं।
जमीन के नीचे उगनेवाली जिमीकंद एक बहुगुणकारी सब्जी है। इसमें फाइबर, विटामिन सी, विटामिन बी6, विटामिन बी1 और फोलिक एसिड होता है। साथ ही जिमीकंद में पोटेशियम, आयरन, मैग्नेशियम, कैल्शियम और फॉस्फोरस भी पाये जाते हैं। पेट से जुड़े रोगों के लिए इसका सेवन रामबाण की तरह होता है। यह दिमाग तेज करने में भी मदद करता है अर्थात् अंग्रेजी में जिमीकंद खाने से मेमोरी पावर बढ़ती है। इसे रोज खाने वाले को अल्जाइमर जैसी बीमारी कभी नहीं होती और याद्दाश्त चंगा रहता है। इसमें ओमेगा-3 काफी मात्रा में पाया जाता है। यह खून के थक्के जमने से रोकता है। इसमें तांबा है जो लाल रक्त कोशिकाओं को बढ़ाकर शरीर में रक्त बहाव को दुरुस्त करता है। जिमीकंद में एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन सी और बीटा कैरोटीन पाये जाते हैं। यही कैंसर पैदा करने वाले फ्री रैडिकल्स से लड़ने में सहायक होते हैं। इसका सेवन करने वाले को गठिया और अस्थमा जैसी बीमारी तो कभी होगी ही नहीं लेकिन अगर हो गयी तो उसे दूर भी करता है। जिमीकंद में तांबा या कॉपर भी होते हैं जो लाल रक्त कोशिकाओं अर्थात् आरबीसी को बढ़ाते हैं और साथ ही इसमें पाये जानेवाले आयरन या लोहे से शरीर में रक्त संचालन ठीक रहता है।
सिर्फ यही नहीं और भी रोग हैं जिन्हें जिमीकंद अपने आसपास फटकने नहीं देता है। इसका उपयोग बवासीर में होने की वजह से इसे अर्शीघ्न भी कहते हैं। अर्थात् इसके सेवन करनेवाले को बवासीर कभी नहीं होता है।  सांस की बीमारी, खांसी, जोड़ों के दर्द, कृमिरोगों से राहत रहती है। पीलिया बीमारी में भी यह बहुत ही फायदेकारक है क्योंकि यह लीवर या यकृत की समस्या को भी ठीक करता है। इसमें पर्याप्त मात्रा में बी-6 होने से दिल की बीमारी नहीं होती। इसमें विटामिन बी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह आपके रक्तचाप को नियंत्रित करता है जिससे आपके हृदय पर कोई दबाव नहीं पड़ता और वह स्वस्थ्य रहता है। जिमीकंद में पोटैशियम की मौजूदगी के कारण यह पाचन क्रिया को दुरुस्त करने में मदद करता है। इसे नियमित खाने से कब्ज और कोलेस्ट्रोल की समस्या दूर हो जाती है। अर्थात् यह आपको मोटा नहीं होने देगा। इसका यह मतलब नहीं आपको तंदरूस्त नहीं होने देगा। यह तो सिर्फ आपके शरीर में चर्बी नहीं जमने देता है। कुल मिलाकर यह सब्जी ऊर्जा से भरपूर सब्जी है। यही कारण है कि इसे गर्मियों की तुलना में ठंड के मौसम में ज्यादा खाया जाता है। इसे खाने वाले के यौन संबंधी बीमारियों में भी लाभ मिलता है। खासकर इसके सेवन से सेक्स पावर में भी सुधार होती है। यही वजह है कि शास्त्रों में साधकों के लिये लहसुन और प्याज के साथ जिमीकंद से भी परहेज की बात सिर्फ इसलिये की गयी है क्योंकि यह कामुक मानसिकता में भी इजाफा करता है। गुणों के खजाने जिमीकंद को संस्कृत में सूरण, हिंदी में सूरन, जिमिकंद, जिमीकंद और मराठी में गोडा सूरण, बांग्ला में ओल, कन्नड़ में सुवर्ण गडड़े, तेलगु में कंडा डूंपा और फारसी में जमीकंद कहते हैं। हाथी के पंजे की आकृति के समान होने से इसे अंग्रेजी में याम, एलीफेंट याम या एलीफेंट फुट याम भी कहते हैं।

चर्मरोग पीड़ितों के लिये है रामबाण



जिमीकंद ड्राई, कसैला, खुजली करने वाला होता है। इसे गर्भवती महिलाओं को सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही किसी भी प्रकार से चर्म या कुष्ठरोग और सफेद दाग से पीड़ित व्यक्ति को जिमीकंद नहीं खाना चाहिए। तो क्या कुष्ठरोग या चर्मरोग से पीड़ित व्यक्ति के लिये जिमीकंद कोई काम का नहीं?  ऐसा नहीं है। यदि कोई व्यक्ति कुष्ठरोग या चर्मरोग से पीड़ित हो तो वह जिमीकंद को पीसकर दही के साथ अपने पूरे शरीर में लेप लगा सकता है। हो सकता है कि आपको पूरे शरीर में लेप लगाने से आप सहन नहीं कर पाएं। इसलिये पहले आप पांच अंगुल जगह के बराबर त्वचा पर इसका लेपन करें। और उसका परिणाम देखें। जब वह आप सहन कर लीजिएगा तो दो-तीन दिन इसी प्रकार से एक ही स्थान पर आप इसका लेपन करें और जब आपको सही परिणाम मिलता है तब आप अपनी जिम्मेदारी पर पूरे शरीर में इसका लेप लगा सकते हैं।



हालांकि हमारी राय में थोड़ा-थोड़ा लगाना ही श्रेयस्कर होता है। जिसे आप बर्दाश्त कर सकें। इससे पीड़ित व्यक्ति को राहत मिलती है और धीरे-धीरे वह ठीक हो जाता है। हां ठीक होने के बाद वह इसका सेवन कर सकता है। अर्थात् पहले लेपन फिर सेवन। यहां तक कि सामान्यतः किसी को यदि फोड़ा या फूंसी भी निकल आया हो तो वह इसे पीसकर घाव पर लगा सकता है। और हां गर्भवती महिलाएं डेलीवरी के बाद इसका सेवन खुशी से कर सकती हैं।